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BACTERIA

जीवाणु: मित्र और शत्रु (Bacteria: Friend and foe)

परिचय क्या सभी जीवाणु हानिकारक होते है ? हमारे जीवन में इनकी क्या अच्छे और हानिकारक पहलु है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे । जीवाणुओं की खोज1. लाभदायक जीवाणु ( Friend bacteria )2. हानिकारक जीवाणु ( Foe bacteria ) परिचय टाइफाइड, मलेरिया, कालाजार, क्षय रोग आदि जैसे घातक रोगों से प्रतिदिन हजारो लोग मौत के मुहं में चले जाते है । विश्व में अधिकांश मौतों के कारण भी यही जीवाणु है । जीवाणु हर जगह पाए जाते है, हवा, पानी, धरती के उपर , धरती के नीचे, हमारे शरीर पर शरीर क्र भीतर , यहाँ तक की हमारे भोजन में भी पाए जाते है । क्या सभी जीवाणु हानिकारक होते है ? हमारे जीवन में इनकी क्या अच्छे और हानिकारक पहलु है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे । जीवाणुओं की खोज जीवाणुओं की खोज आज से करीब-करीब 300 साल वर्ष पहले माइक्रोस्कोप के आविष्कार के साथ प्रारंभ हो गयी थी । लेकिन उस समय तक उनका वर्गीकरण नही हो सका था । रोगाणुओं का स्वरूप 1850 ई. में लुई पास्चर ने निर्धारित किया । इनकी खोज से संसार भर के वैज्ञानिकों , डॉक्टरों और बुद्धिजीवियों में खलबली मच गयी और सभी रोगों की कारणों की जाँच पड़ताल होने लगी, अलग-अलग प्रकार के कीटाणुओं की तलाश होने लगी रोगों को उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को खोज निकाला गया । और उन्हें शरीर से मर भगाने के लिए प्रयास आरम्भ क्कर दिया गया । जीवाणु आकर में इतने छोटे होते है की 1 इंच के स्थान पर 25000 जीवाणु रह सकती है । एक सुई के नोक पर सैकड़ो जीवाणु ठहर सकते है । और 1 ग्राम मिटटी में 40 million जीवाणु रह अकते है । जीवाणुओं में नर और मादा का भेद नही होता और ना नही अपनी संख्या में वृद्धि के लिए इन्हें सहवास की आवश्यकता होती है । इस प्रकार के जीव में वृद्धि एक से दो , दो से चार और चार से आठ के क्रम में होती रहती है । आधा से एक घंटे में जीवाणु फट कर दो हो जाते है । यदि एक घंटे में इस क्रम को दो माना जाए तो 24 घंटे में 1 कीटाणु 1 करोड़ 64 लाख से अधिक हो जाते है । यदि आधा घंटे में विभाजन होता हो तो 3 quadrillion हो जाते है । जीवाणु को सूर्य का प्रकाश और ऑक्सीजन नही भाता है । मुर्दों, सड़े स्थानों, अँधेरे, असुद्ध वायु और साधारण वायुमंडल लगभग 60 से 100 फ़ारेनहाइट में तीव्रता से वृद्धि करते है । जीवाणुओं को दो भागों में बाटा जाता है । लाभदायक जीवाणु ( Friend bacteria ) शत्रु या हानिकारक जीवाणु ( foe bacteria ) 1. लाभदायक जीवाणु ( Friend bacteria ) मित्र जीवाणुओं ( Friend bacteria ) से दूध से दही बनता है, पनीर बनता है, आटे में खमीर उठता है, सिरका और अल्कोहल जैसी वस्तुए बनती है । कई प्रकार के ऐसे जीवाणु है जो कृषि में सहयोग करते है । और सबसे से बड़ी बात आज कल जिस दवा के कारण दुनिया भर के लोगो…

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what is calcium.

कैल्शियम क्या है? ( what is calcium )

कैल्शियम क्या है? ( what is calcium )Calcium एक आवश्यक पोषक तत्व है, जिस प्रकार मांसपेशियों के लिए प्रोटीन और शक्ति के लिए कार्बोज और वसा की की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार हड्डियों को strong और ब्लड को बैलेंस रखने के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है, लगभग पूरे बॉडी वेट का 99% कैल्शियम हड्डियों में और कुछ मात्रा दांतों में उपस्थित होता है. 1% बॉडी के सॉफ्ट टिश्यू फ्लूइड में पाया जाता है, एक एडल्ट स्केलेटन में औसतन् लगभग १२०० सौ ग्राम कैल्शियम  hydroxya- Patite के रूप में पाया जाता है. जो हड्डियों को कठोर बनाता है, आँतों से पर्याप्त कैल्शियम के शोषण हेतु विटामिन की आवश्यकता होती है इसके अभाव में कैल्शियम की कमी हो जाती है, कैल्शियम की कमी कई कारणों से हो सकती है जैसे – unbalanced डाइट, आंतो से कैल्शियम का अपर्याप्त शोषण calcium की कमी से पेशियाँ कमजोर हो जाती है. हार्टबीट ठीक नहीं रहती, रक्त पतला हो जाता है पेशियाँ अकड़ जाती है मासिक धर्म के समय पेट में ऐठन रहती है स्किन ड्राई हो जाती है कई बार बाल झड़ने लगते है कैल्शियम की मात्रा एक साधारण व्यक्ति को एक ग्राम कैल्शियम काफी होता है. गर्भवती स्त्री को १.५ ग्राम स्तनपान करनेवाली माताओं को २ ग्राम प्रतिदिन किशोर बच्चों को १.४ ग्राम प्रतिदिन प्राप्ति साधन कैल्शियम दूध के अतिरिक्त अन्य सस्ते तथा सर्वत्र सुलभ खाद्यों में मिलता है । गाजर का कैल्शियम दूध से किसी भी प्रकार कम नही है । बल्कि बादाम उससे भी कम उपयोगी है । अजवाइन , पत्ता गोभी, शलजम, चुकंदर, और सहजन, की फली और पत्ती में पर्याप्त मात्रा में होता हैं । प्रत्येक हरिसब्जी ,फल , अन्नकण के चोकर , निम्बू संतरा,मसूर , तिल, राव और शिरा में भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं । इसके आलावा यह अंजीर , भिन्डी, गोभी, मैथी का साग , पलक, मटर, सोयाबीन, लहसुन, सेम, गन्ना, मठ्ठा , मक्खन , पनीर और गुड में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कैल्शियम के कार्य यह क्षार का उत्पादक होता है । यह हड्डियों , दांतों , भ्रूण के विकास में आवश्यक होता है । रोग प्रतिरोधक व् जीवन शक्ति वर्धक है । रक्त को थक्का जमाने में सहायक होता है । मांशपेशियो को शक्ति प्रदान करता है ।

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इन गलतियों के कारण आप मौसम के संधि काल में सर्दी, खांसी, बुखार आदि से बीमार पड़ जाते है?

बदलते मौसम मे हम बीमार क्यों हो जाते है? देखिए मोटा माटी बीमार होने के कुल दो कारण है । आंतरिक कारक- जैसे हार्मोन की गड़बड़ी से मूड का बदलना , गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन, चिंता-तनाव , जैसे लक्षण आते है । इसी समूह मे एक बात यह आती है की पोषक तत्वों की कमी से शरीर मे कई अहम बदलाव आ जाते है, जैसे विटामिन की कमी से उत्पन्न रोग , बाहरी कारक -जैसे अधिक ठंडी -गर्मी , आघात, बिजली के झटके, शराब का सेवन, संक्रम रोगों के शिकार होना , धूम्रपान इत्यादि आते है , जब हम मौसम के संधि काल मे होते है। तो हमारे शरीर का तापमान लगातार बदलता रहता है। कभी सर्दी काभी गर्मी बदलते तापमान के कारण हमारे मूँह और पेट उपस्थित सूक्ष्मजीवाणुओं के तापमान मे परिवर्तन आता है, यही वो समय होता है जब जीवाणु अपनी संख्या मे तेजी से वृद्धि करता है। इसलिए जब हम तेज धूप से आते है तो ठंड पानी नहीं पीने की सलाह दी जाती है, जीवाणुओ मे वृद्धि हमें बीमार कर सकता है जैसे - सर्दी, खांसी,बुखार अक्सर देखा गया है की बारिश के मौसम में बुखार अधिक होता है। ऐसा इसलिए की इस मौसम मे रोगाणुओं की संख्या मे अप्रत्यशीत वृद्धि हो रही होती है।, जीवाणुओं के लिए ऐसा मौसम अनुकूल होता है अपनी संख्या में वृद्धि के लिए बदलते मौसम में बीमार होने के प्रमुख कारण असमय स्नान जैसा की उपर बताया गया है की बदले मौसम में रोगाणु अधिक पनपते है, इस मौसम में असमय स्नान आपको बीमार कर सकता है। सबसे उचित समय सुबह का स्नान होता है। सुबह के स्नान का वर्णन हामरे आयुर्वेद भी किया गया है। इस समय का स्नान चित्त को शांति, ओज और ऊर्जा को बढ़ाने वाला होता है। इसलिए सुबह का स्नान ही किया करे । असमय और अनुचित भोजन मौसम के बदलने का प्रभाव हमारे पाचन तंत्र पर भी पड़ता है, असमय किया गया भोजन अपच, बदहजमी को को बढ़ावा देता है। गैस का कारण बनता है। जिससे पेट दर्द, पतला दस्त, उल्टी, आदि हो सकता है, देखिए भोजन को digest होने के लिए एक निश्चित तापमान की आवश्यकता होती है जब इस तापमान मे परिवर्तन होता है तो अनेक समस्याए उत्पन्न हो जाती हैं। और हमे डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है। अनुचित भोजन से मतलब अपनी तासीर के उलट कोई ऐसा पदार्थ कहा लेना जिनका पाचन हमारे लिए सही नहीं होता या फिर सफाई के अभाव वाले स्थानों से भोज्य पदार्थों का सेवन सदैव हानिकारक होता है। दूषित पानी किसी भी मौसम मे खासकर बारिश के बाद के मौसम के बाद में पानी का दूषित हो जाना आम बात है । दूषित पानी कई प्रकार के रोगों का कारक है। जिसे सहायक कारक कहा जा सकता है। सहायक कारक उसे कहते है जिसमें रोगी आनुवंशिक, इम्यून सिस्टम, शारीरिक क्षमता आदि दोषों से ग्रसित हो और सहायक कारक रोगों को उभरने के मौका दे देता है।

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चिलचिलाती धूप से आने के बाद तुरंत पानी पीना चाहिए या नहीं?

चिलचिलाती धूप से आने के बाद तुरंत पानी पीना चाहिए या नहीं?

हम सभी ने सुना है की कड़ी धूप से होकर अंदर आए तो ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए। पर ऐसा क्यों? चलिए आपको हम बताते है । हमारे मूँह के अंदर ग्रास और श्वासनली के आस-पास जो जीवाणु रहते है, वे धूप में रहने के कारण काफी अधिक तापमान पर होते है लेकिन जैसे हम ठंडा पानी पीते है, जीवाणुओं का तापमान अचानक से गिर जाता है। तापमान मे अचानक से परिवर्तन जीवाणुओं में प्रजनन दर को तेज कर देता है। जिससे हम बीमार पड़ जाते है। यही कारण है की जब मौसम बदलता है तो तापमान मे अचानक परिवर्तन के कारण हमारे आस-पास पाये जाने वालें जीवाणुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है जिससे हम प्रभावित होते है, अर्थात जब मौसम एक स रहता है तो हमारे उपर जीवाणुओं का आक्रमण कम होता है। तेज धूप से आने के बाद लोगों को नॉर्मल पानी पीना चाहिए. बाहर से आने के तुरंत बाद बहुत ठंडा पानी पीने से सभी लोगों को नुकसान नहीं होता है, लेकिन जो लोग डायबिटीज, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गले की परेशानी या कमजोर इम्यूनिटी से जूझ रहे हैं, उन्हें कुछ दिक्कतें हो सकती है. सभी लोगों को धूप से आने के बाद कुछ मिनट रुककर ही पानी पीना चाहिए, ताकि बॉडी में अचानक टेंपरेचर चेंज न हो. हर व्यक्ति का शरीर अलग-अलग होता है और ठंडे पानी का असर भी अलग होता है. भीषण गर्मी के मौसम में लोगों को ज्यादा देर धूप में नहीं रहना चाहिए, वरना इससे लोगों को हाइपरथर्मिया हो सकता है. ऐसी कंडीशन में शरीर का तापमान 103-104 डिग्री फॉरेनहाइट तक पहुंच सकता है और कई बार मौत भी हो सकती है. इससे बचने के लिए लोगों को धूप में ज्यादा देर रहने से बचना चाहिए. इस मौसम में लोगों को ज्यादा पसीना आता है, जिससे शरीर का हाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बिगड़ सकता है. डिहाइड्रेशन से बचने और ब्लड सोडियम लेवल को सही रखने के लिए लोगों को बाहर से आने के बाद पानी में नींबू, नमक और चीनी मिक्स करके पीना चाहिए. इससे शरीर में सोडियम की कमी नहीं होगी.

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hair loss

कही आपके बालों के झड़ने के पीछे विटामिन D की कमी तो नहीं ?

आनुवंशिक कारक – बालों के झड़ने का सबसे आम कारण वंशानुगत या आनुवंशिक कारक हैं। इस स्थिति को पुरुष या महिला पैटर्न गंजापन के रूप में जाना जाता है और यह डायहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन (डीएचटी) के प्रति संवेदनशीलता का परिणाम है, एक हार्मोन जो बालों के रोम को सिकुड़ने का कारण बनता है।

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टाइफॉइड बुखार (Typhoid fever) कारण लक्षण और उपचार की जानकारी हिन्दी में ।

टाइफॉइड बुखार नमस्कार दोस्तों टाइफॉइड बुखार एक जानलेवा रोग है। जो सलमोनेला टाईफि नामक बैक्टीरीआ से होता हैं , W.H.O की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 9 करोड़ लोग इस रोग से पीड़ित होते है। और इनमें से 1 लाख 10 हजार लोग मारें जाते है। आज हम इस टॉपिक के माध्यम से जानेंगे की टाइफॉइड बुखार कैसे और क्यों होता है तथा इसका क्या इलाज है। टाइफॉइड बुखार सलमोनेला टाईफि नामक बैक्टीरीआ से होता हैं जो की मानव शरीर मे जीवित रहता है और वृद्धि करता जाता है । शहरी करण , जलवायु परिवर्तन इस रोग के होने के संभावना को और अधिक बढ़ा देता है। इस बुखार के बैक्टीरीआ दूषित भोजन, पानी, दूध, इत्यादि से फैलता है सामान्यतः जिस जगह साफ-सफाई की कमी होती है। एक बार इस रोग के बैक्टीरीआ शरीर मे प्रवेश कर जाते है तब बुखार के सेपटीसीमिया हो जाता है। सलमोनेला टाईफि समान्यतः छोटी आँत को अपना घर बना लेते है और ज्यादा वृद्धि कर लेने पर आँत मे अल्सर पैदा कर देते है। रोग लक्षण - प्रायः पीड़ित होने के 10 से 14 दिन बाद दिखते है। रोग लक्षण इस रोग का आरंभिक लक्षण सिर दर्द , बदता हुया बुखार, बेचैनी , मतली, पेट दर्द, कब्ज, या पतला दस्त इसके प्रमुख लक्षण है। गंभीर संक्रमण की स्थिति मे रोगी की हालत और अधिक बिगड़ सकती है यंहा तक की मृत्यु भी हो सकती है। Acute Typhoid Fever गंभीर हो सकता है। यह निर्भर करता है clinical Setting और Quality care पर 10% टाइफॉइड पीड़ित गंभीर जटिलताओं से पीड़ित होते है । और 3% लोगों को अस्पताल मे भर्ती होना पड़ जाता है। रोगी की नब्ज गति बढ़ जाती है। रक्तचाप कम हो सकता है। तीव्र संक्रमण मे आंतों मे अल्सर , हेपेटाइटिस, निमोनिया, हैमरेज भी हो सकता है प्रायः ऐसे लक्षण बहुत ही कम देखने को मिलते है। संक्रमण के स्तर 1-5% लोग इस रोग के वाहक होते है । कभी-काभी ऐसे लोग जिनमे सलमोनेला टाईफि के bacteria सुसुप्त अवस्था मे होते है , जो उनको हानी नहीं पहुचाते परंतु ऐसे लोगों के मल या उनके द्वारा पर्याप्त साफ-सफाई के अभाव मे भोजन परोशने या बनाने के दौरान यह अन्य लोगों को प्रभावित कर सकता है। संचरण मानव एक मात्र प्राकृतिक होस्ट है सलमोनेला टाईफि का , सलमोनेला टाईफि संक्रमण शौच, दूषित, पानी , भोजन, दूध, से संचरित हो सकता है । खासकर सीवेज के पानी से उगाई गई फल,सब्जियों से ऐसा तथ्य चूहों पर किए गए परीक्षण के आधार पर कहा जाता है। सलमोनेला टाईफि मुख, और श्वसन तंत्र द्वारा हमारे शरीर के अंदर संचरित हो सकते है। टाइफॉइड रोग ऐसे क्षेत्रों मे अधिक पाया जाता है , जिस जगह पे कम-साफ सफाई पाई जाती है, जैसे -फूड स्टॉल पर हैन्डलर द्वारा सफाई का ध्यान न रखना Diagnosis blood Culture और Widal Test द्वारा इस रोग की पहचान की जा सकती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर द्वारा Blood Count भी कराया जा सकता है। कभी-कभी मल का परीक्षण , Bone Marrow टेस्ट का भी सलाह दिया…

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माइग्रैन (आधा सिरदर्द) Migraine कारण, लक्षण और उपचार

नैदानिक लक्षण (Clinical Feature)कारण (Cause)उपचार माइग्रैन एक प्रकार का आवेगी सिर दर्द है जो बहुधा एक ही परिवार के कई सदस्यों को होता है । माइग्रैन की कई विशिष्टताएं होती है, लेकिन यह जरूरी नहीं है की इस रोग से पीड़ित सभी व्यक्तियों मे ये विशिष्ट लक्षण हो। नैदानिक लक्षण (Clinical Feature) सिरदर्द प्रायः दर्द के दौरे के पूर्वाभास (Aura) से होता है. इसके अंतर्गत दृष्टि संबंधी गड़बड़ी के साथ रोशनी की तेज चमक विभिन्न रंगों की आड़ी-टेढ़ी लहरें दिखना, पा दृष्टि में आंशिक कमी; या चेहरे या शरीर के एक तरफ वाले भाग में सुत्रपन या झुनझुनी होने का संवेदन महसूस होना सम्मिलित है. दर्द के दौरे का यह पूर्वाभास करीब आधे घंटे तक रहता है और इसके बाद सिरदर्द होता है. सिरदर्द प्रायः धड़कनयुक्त होता है जो सिर के एक तरफ ज्यादा (आधा सिरदर्द) और बहुधा भूख में कमी, जी मितलाने एवं उलटियां होने से सम्बन्धित होता है. यह सिरदर्द कई घंटों या कभी-कभी कई दिनों तक हो सकता है. माइग्रेन के दौरे अत्यधिक कार्य या तनाव के बाद आराम के क्षणों में, विशेषतः सप्ताहांत में होने की संभावना ज्यादा रहती है. विभिन्न रोगियों में माइग्रेन के दौरे भिन्न-भिन्न प्रेरक पहलुओं द्वारा उत्तेजित होते हैं. कुछ भोज्य-पदार्थ (जैसे चॉकलेट्स, पनीर, शराब); कुछ दवाइयां (जैसे गर्भनिरोधक गोलियाँ); तेज रोशनी; अत्यधिक व्यायाम; भावनात्मक गड़बड़ी या रजोधर्म के पूर्व का तनाव माइग्रेन के दौरे को बढ़ा सकते हैं. कारण (Cause) ऐसा सोचा जाता है कि माइग्रेन प्रमस्तिष्कीय रक्तवाहिकाओं में होने वाले परिवर्तनों के कारण होता है. दर्द के दौरे की अवस्था में ये रक्तवाहिकाएँ संकुचित होकर सँकरी हो जाती हैं जबकि धड़कनयुक्त सिरदर्द रक्तवाहिकाओं के इसके बाद होने वाले विस्तारण और पूर्ण रूप से भर जाने से सम्बन्धित रहता है. माइग्रेन से पीड़ित व्यक्तियों को यह सीख लेना चाहिये कि माइग्रेन के दौरे को बढ़ाने वाले संभावित प्रेरक पहलू कौनसे हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है. उपचार इसका उपचार प्रायः प्रोप्रानोलॉल नामक दवा से की जाती है यह रोगी उम्र और स्थिति के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। और साधारण घरेलू उपचार से जब राहत ना मिले तब अपने डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए किसी भी दवा का सेवन स्वं से नहीं करना चाहिए

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अपच (बदहजमी) (Dyspepsia) कारण लक्षण और उपचार

दर्द भोजन के बाद उदर के ऊपरी भाग मे जलनयुक्त दर्द या तकलीफ होना बदहजमी का उदाहरण है। भोजन के बाद विभिन्न प्रकार के दर्द अलग-अलग बीमारियों मे देखे जाते है। जैसे गैस्ट्रिक अल्सर मे भोजन करने के आधे घंटे के अंदर दर्द शुरू हो जाता है, और यह दर्द फिर से भोजन खासकर मशलेदार या गरम भोजन करने से और अधिक बढ़ जाता है।

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विटामिन

विटामिन (Vitamin) क्या है ? विटामिन के प्रकार, कार्य, कमी से उत्पन्न रोग, स्रोत

विटामिन्स, विभिन्न भोज्य-पदार्थों में उपस्थित कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं जो स्वास्थ्य को उचित रूप से बनाये रखने के लिये आवश्यक होते हैं. कई प्रकार के विटामिन्स होते हैं जिनकी शरीर के चयापचय के कुछ भाग पर कुछ विशिष्ट क्रिया होती है. विटामिन की कमी से शरीर में प्रायः महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाते हैं.

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पतला-दस्त (diarrhea) कारण, लक्षण, उपचार

अतिसार को अंग्रेजी में 'डायरिया' तथा बोलचाल की भाषा में 'दस्त होना' कहा जाता है। रोग परिचय- गुदा मार्ग से जब बहुत से मल का बार-बार परित्याग होना 'अतिसार कहलाता है। इसमें मल पतला होकर बार-बार बड़ी मात्रा में आता है। 'Acute Diarrhoea is defined an increase in the fluidity and volume of stool." परिभाषा - दस्त का अधिक बार होना, अधिक पतला होना तथा अधिक मात्रा में होना अतिसार कहलाता है (!ncrease in frequency (ie thrice daily) liquidity and amount (ie>200gm/d) is known as diarrhoea) जब खाया हुआ भोजन आमाशय पचा नहीं पाता है तब वह अनपचे खाने के साथ जो [अटलर दस्त आते हैं, उनको की अतिसार diarrhea कहा जाता है।

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Yoga Tips:-बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में अल्जाइमर-डेमेंशिया खतरा को कम करता है योग

UCLA के नए स्वास्थ्य अध्ययन से पता चला है की कुंडलिनी योग से महिलाओं मे बढ़ती उम्र मे स्मृति और अल्जाइमर-डेमेंशिया का खतरा कम हो जाता है। 15 साल चले इस स्वास्थ्य अध्ययन मे शोधकर्ताओं ने योग और स्मृति सुधार मे एक तुलनात्मक अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया की वास्तव मे योग स्मृति सुधार और अल्जाइमर-डेमेंशिया के खतरा को कम करता है इस अध्ययन का नेतृत्व किया डॉक्टर हेलेन Lavretsky ने इस शोध को Neuroscience and Human Behavior के अंतर्गत किया गया । पता लगाने की कोशिश की गई की शुरुआती अल्जाइमर-डेमेंशिया का योग से क्या प्रभाव पड़ता है । महिलाओं मे पुरुषों के मुकाबले अल्जाइमर-डेमेंशिया का खतरा ओगुण ज्यादा होता है इसके कई कारक है जैसे की लंबी आयु की चाहत, estrogen का बदलाव, menopause और आनुवंशिकी शामिल है । महिलाएं दैनिक जीवन मे पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मानसिक दवाब सहती है जिनसे उनकी बढ़ती उम्र मे अल्जाइमर-डेमेंशिया का खतरा भी बढ़ता जाता है । इस नए अध्ययन मे 50 साल से अधिक उम्र की 60 महिलाओं ने भाग लिया जिनमे 30 महिलाओं ने कभी अल्जाइमर-डेमेंशिया को महसूस किया था । महिलाओं को दो समूह मे विभाजित किया गया, एक ग्रुप को साप्ताहिक कुंडलनी योग 12 सप्ताह तक कराया गया जबकि दूसरी समूह को स्मृति विकास की तैयारी करवाई गई, समानतार समय में उन्हे इससे जुड़े कुछ गृह कार्य भी दिए गए । कुंडलिनी योग मुद्रा एक प्रकार का योग है जिसमें जप, गायन, श्वास व्यायाम और आसन शामिल हैं। पहले समूह का 12 सप्ताह बाद ब्लड टेस्ट , MRI स्कैन किया गया इस समूह की महिलाए अल्जाइमर-डेमेंशिया से ग्रसित थी । उनमे सकारात्मक सुधार पाया गया जबकि दूसरी समूह की महिलों मे जो की इस रोग से ग्रस्त नहीं थी उन्हे स्मृति सुधार जैसे कार्य करवाए गए थे उनके मुकाबले पहली समूह की महिलाओं को अधिक लाभ हुया था । अतः कहा जा सकता है की योग बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में अल्जाइमर-डेमेंशिया खतरा को कम करता है और बुढ़ापा सूजन जैसे लक्षणों को कुछ हद तक रोकने में कारगर है ।

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