कार्बोहाइड्रेट्स कम खर्चीले और आसानी से प्राप्त होने वाले भोज्य पदार्थ हैं. ब्रेड, अनाज, चावल, आलू और मांडयुक्त भोज्य-पदार्थ जैसे सेवइयां, ये विश्व के कई भागों में आहार का मुख्य भाग होते हैं. शकर भी कार्बोहाइड्रेट है तथा यह गन्ने और चुकन्दर से प्राप्त होती है. यह कार्बोहाइड्रेट का अत्यधिक सान्द्र प्रकार है जो आँतों से रक्त प्रवाह में ग्लूकोस के रूप में शीघ्र शोषित हो जाती है. शकर का उपयोग न सिर्फ चाय, कॉफी व फलों के रस में मीठापन लाने के लिये बल्कि जेम्स, मिठाइयां, चॉकलेट्स बिस्किट्स और केक्स में भी किया जाता है, और सूप्स और भूनी सेम जैसे नमकीन खाद्य में भी डाली जाती है. शकर से मसूड़ों के किनारों पर बैक्टीरिया वृद्धि करते हैं जिससे दाँतों की सड़न (Caries) होती है. संयुक्त राज्य में शकर की औसतन खपत सालाना 55 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति है.
यह भोजन का काफी सान्द्रित प्रकार है और इसकी अधिक मात्रा में खपत मोटापा उत्पन्न करती है. फलों व दूध में फूक्टोज और लेक्टोज जैसी प्राकृतिक शर्कराएं पायी जाती है.
लार और आमाशय व आँतों में उपस्थित विभिन्न रसों द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स जो शर्करा पॉलीमर है (श्रृंखला में जुड़ी कई इकाइयाँ) का पाचन ग्लूकोस के रूप में होता है, और इसी ग्लूकोस के रूप में कार्बोहाइड्रेट्स रक्त में शोषित होते हैं. ग्लूकोस यकृत और पेशियों में ग्लाइकोजन के रूप में संचित होता है और जब शरीर को ऊर्जा अथवा शक्ति की आवश्यकता
होती है तब यह ग्लूकोस में परिवर्तित हो जाता है.
शरीर, अमीनो अम्लों से यकृत में ग्लूकोस का निर्माण कर सकता है जिससे यह ग्लूकोस भोजन के साथ और ग्लूकोस के संग्रह के लिये प्रदान किया जा सके
आहारीयुक्त रेशेदार पदार्थ (Dietary Fibre)
रेशा एक पारिभाषिक शब्द है जो पौधों को सहारा देने वाली रचना के लिये प्रयोग किया जाता है तथा यह पौधों के सभी भागों में पाया जाता है. रफेज (Roughage) शब्द भी उपयोग किया जाता है. साथ ही रेशा सब्जियों, फलों और गेहूँ व राई के दानों में भी पाया जाता है. रेशे का अधिकांश भाग आमाशयिक आंत्रिक मार्ग में नहीं पचता है, और चूंकि यह शोषित भी नहीं होता है इसलिये इसकी ऊर्जा सम्बन्धी कोई उपयोगिता भी नहीं है. फिर भी, यह आँतों के उचित कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और मल का अधिकतम भाग बनाता है. जब भोजन अधिक रेशेयुक्त होता है तो उसके पोषक घटक देरी से अवशोषित होते हैं और इस प्रकार ग्लूकोस एवं कोलेस्टरॉल जैसे पदार्थों के शोषण में देरी कर देते हैं.
आहार सम्बन्धी आधुनिक आदतों के कारण हमारे भोजन में रेशेयुक्त पदार्थों के अन्तर्ग्रहण की मात्रा काफी कम हो गई है. आटे और ब्रेड का सफेद रंग बनाये रखने के लिये हम गेहूँ के बाहरी छिलकों (चोकर) को फेंक देते हैं. सफेद आटे (मैदा) से बनाई गई सफेद बेड, बिस्किट, पेस्ट्री, केक्स और हलवे में रेशेयुक्त पदार्थ की अत्यधिक कमी रहती है. सफेद शकर चुकन्दर और गन्ने से परिष्कृत रूप में प्राप्त की जाती है जिसमें रेशा भी कम होता है, तथा रक्त-प्रवाह में शीघ्रता से शोषित हो जाती है. रेशा युक्त भोजन करने से बवासीर डाइवर्टिकुलर बीमारी और आंत का कैंसर होने का खतरा कम हो जाता
वसा (Fat)
कार्बोहाइड्रेट्स के बाद ऊर्जा देने वाला दूसरा मुख्य भोज्य-पदार्थ वसा है. औसत आहार के
लिये जाने वाले मुख्य वसा निम्नलिखित हैं :
- तेल व वनस्पति घी, पकाने के उपयोग किये जाते हैं
- मक्खन एवं मरिन
- वसायुक्त माँस
- दूध, पनीर, और क्रीम
- चॉकलेट, बिस्किटस् और केक में पायी जाने वाली संस्कारित (Processed) वसा.
पश्चिमी देशों के आहार में वसा अत्यधिक मात्रा में रहने से एथेरोस्केरॉसिस, एन्जाइना,
मायोकॉर्डिअल इन्फार्कश्न और समयपूर्व (Premature) मृत्यु के लिये सहायक पहलू है.
आहार में वसा ग्लिसेराल के साथ तीन वसीय अम्लों के जुड़ने से बनता है जिसे ट्राइग्लिसरॉइड
कहते हैं. कुछ वसीय अम्लों में सर्वाधिक हाइड्रोजन बंध होते हैं (संतृप्त – Saturated) और
अन्य में सिर्फ कुछ ही हाइड्रोजन बंध होते हैं (मोनोअनसेचुरेटेड या बहुअसंतृप्त Polyu-
nsaturated), शूकरवसा, मक्खन और दूध जैसी कई संतृप्त वसाएं मुख्यतः प्राणीय स्रोतों से
प्राप्त होती हैं. कार्न आइल और सनफ्लावर ऑइल जैसे कई वनस्पतिय तेलों में बहुअसंतृप्त
वसाएं पायी जाती हैं.
प्रोटीन (Proteins)
शरीर के सामान्य कार्य के लिये शरीर जिन प्रोटीन्स का निर्माण खुद करता है उस कार्य के लिये जिन अमीनो अम्लों का उपयोग होता है वे प्रोटीन युक्त भोज्य पदार्थों से मिलते हैं. प्रोटीन के टूटने और निर्माण की प्रक्रियाओं के द्वारा शरीर के स्वयं के प्रोटीन्स सतत बदलते रहते हैं.
इस प्रथम आवश्यक कार्य के अलावा इनका उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्बोहाइडेंट्स एवं वसा के समान भी किया जा सकता है. सामान्य आहार में प्रोटीन के मुख्य शोत निम्नलिखित हैं :
- माँस एवं मछली
- पनीर एवं दूध
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प्राणीय प्रोटीन्स
- अंडे
- मटर, सेम एवं आटा – वनस्पति प्रोटीन्स
प्रोटीन्स करीबन पच्चीस विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्लों की आपस में जुड़ी हुई एक श्रृंखला है. इनमें से कुछ अमीनो अम्लों का निर्माण शरीर स्वयं कर सकता है, लेकिन अन्य जिनका निर्माण शरीर नहीं कर सकता है वे ‘आवश्यक’ होते हैं. इन्हें शरीर के प्रोटीन्स के नवीनीकरण के लिये आहार में सम्मिलित करना आवश्यक है. प्राणीय प्रोटीन्स, जैसे माँस आवश्यक और अनावश्यक अमीनो अम्लों का संतुलित सम्पूरक है, जबकि वनस्पति प्रोटीन अमीनो अम्लों का एक पर्याप्त किन्तु कम संतुलित स्रोत है.
पाचन की प्रक्रिया में आमाशय के पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा आंत्रिक रसों के द्वारा प्रोटीन एमिनो एसिड्स में विभाजित हो जाते हैं. इसके बाद विभिन्न एमिनो एसिड्स रक्त प्रवाह में शोषित होकर ऊतकों में वितरित हो जाते हैं.
शरीर के सभी ऊतकों में अमीनो अम्ल शोषित होकर प्रोटीन्स का निर्माण करते हैं. जबकि कार्बोहाइड्रेट्स, ग्लाइकोजन और वसाओं (ट्राइग्लिसेराइड्स) को बनाते हैं, प्रोटीन्स की कई प्रकार की विभिन्न संरचनाएँ होती हैं, और प्रत्येक प्रोटीन का ऊर्जा के एक निष्क्रिय भंडार के समान कार्य करने के बजाए एक अलग स्पष्ट कार्य होता है. उदाहरणार्थ पेशीय प्रोटीन, गति के लिये जरूरी है, यकृत एन्जाइम प्रोटीन्स, यकृत की कोशिकाओं में ग्लूकोस और वसाओं के चयापचय के लिये, यकृत से बनने वाला एल्ब्यूमिन प्रोटीन रक्त के ऑन्कोटिक दबाव (Oncotic Pressure) के लिये, पेनक्रिएज से आंत्रिक रसों के एन्जाइम प्रोटीन्स आँत में भोजन का पाचन करते हैं,