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नमस्कार दोस्तों साल 1928 में एक physician , microbiologist अपनी छुट्टिया बिताकर वापस अपने प्रयोगशाला लौटे उन्होंने देखा की पेट्री डिश में जिसे वो कवर करना भूल गए थे , एक फफूंद penicillium notatum ने आसपास के bacteria को मार दिया था । आपको बताते चले की बैक्टीरीअ वही pathogen है जिसके कारण जानलेवा घातक रोग होते है जैसे की- tuberculosis , typhoid , निमोनिया , सिफलिश
पेट्री दिसँ की इस घटना से इन्सपाइर हो कर उन्होंने antibiotic नाम कोई औषधि बनाई शुरुआती परीक्षण उन्होंने ब्रिटिश फार्मसूटिकल कंपनी के सहायता से इंसानी घाव पर किया जो की बैक्टीरीअ से इन्फेक्टिड थे । परीक्षण पेनिकीलिउम नोटातूम से निर्मित ऐन्टाइबाइआटिक से उनका इलाज किया गया । और जो सफल रहा । और us गवर्नमेंट ने इस सफल परीक्षण के बाद इस ऐन्टाइबाइआटिक के मास production मे सहायता की । 1944 आते-आते पेनिसिलिन इन्फेक्शन ट्रीट्मन्ट मे होसटीपीटल्स और फील्ड मे widely use होने वाली याऑउषादी बन गई , लाखों लोगों की जान बचाने वाली इस दवा का nikname वन्डर दृग था । और इस मिक्रोलोगीस्ट का नाम आलेक्ज़ेंडएर फ्लेमिंग था
इस काम के लिए सं 1945 मे नोबल प्राइज़ दिया गया ।
अब एक सवाल उठता है
antibitics के खोज से पहले इन्फेक्शन का उपचार कैसे किया जाता था ।
Pre – Antibiotic era
अंतिम बीसवीं सदी के पहले, जब एंटीमाइक्रोबियल्स विकसित नहीं हुए थे, संक्रमण का इलाज कैसे किया जाता था? यह एक रोग विशेषज्ञों के लिए बड़ी चुनौती थी। यहां कुछ प्राचीन औषधियाँ और तकनीकें थीं जो संक्रमण का इलाज करने में उपयोग होती थीं:
- रक्त निकासी (Bloodletting): यह एक प्राचीन उपचार विद्धि थी जो लगभग 3000 वर्षों तक चली। इसमें शरीर से इंफेकटेड ब्लड की निकासी की जाती थी, जिसमें यह माना जाता था कि यह विद्धि हानिकारक रोगाणुओं को बाहर निकाल देता है। यह तभी किया जाता था जब रोगी के शरीर में अधिक रक्त होता था। और इसमे मृत्यु की सभावना बनी रहती थी। Bloodletting के लिय खास जगह पर एक चिरा लगाकर शरीर दूषित रक्त को बाहर निकाल दिया जाता था।
- जोंक चिकित्सा (Leech Therapy) एक प्राचीन उपचार विधि है जिसमें जोंक (लीच) का उपयोग किया जाता है। इस थेरेपी में जोंक को शरीर के परेशानी वाले भाग पर रखा जाता है, और जब ये जोंक इंसान का खून पीती है, तो एक प्रकार की लार छोड़ती है। यह लार रोगी की परेशानी को ठीक करने में मदद करती है।
- जोंक चिकित्सा का उपयोग प्राचीन मिस्र के समय से ही किया जा रहा है। तब से अब तक, जोंक का उपयोग तंत्रिका तंत्र की परेशानी, दांतों की समस्याएँ, त्वचा रोग और संक्रमण के उपचार में किया जाता रहा है।
- जड़ी-बूटियाँ और कवक (Herbs and Molds): कुछ प्राचीन सभ्यताएं संक्रमण के इलाज के लिए जड़ी-बूटियों और मोल्डस का उपयोग करती थीं। उदाहरण के लिए, प्राचीन मिस्रियों ने संक्रमित घावों पर मोल्डस लगाया करते थे
- शहद (Honey ) प्राचीन समय में लोग घाव पर शहद भी लगाया करते थे । क्योंकि इसमें ऐन्टीबैक्टीरीयल गुण पाए जाते है
यह सभी तकनीकें आजकल के एंटीमाइक्रोबियल्स की तुलना में कम प्रभावी थीं, लेकिन कुछ प्राचीन उपाय आज भी उपयोग में है ।
Future of antibiotics
अब तक 100 से अधिक प्रतिजैविक की खोज की जा चुकी है, जो लॉनगों के जीवन को बचा रहे है , लेकिन अब प्रॉब्लेम यह है की एंटिबयोटिक्स का उपयोग इस कदर बद गया है की बैक्टीरीअ इन के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर ले रहे है, आने वाले समय में । bacterial इन्फेक्शन का ट्रीट्मन्ट काफी मुस्किल हो जाएगा ,
एंटिबयोटिक्स के रेसिस्ट होने के कारण
आजकल antibiotic व्यापक रूप से लिखी जा रही है। पूरे विश्व मे आज antibiotic की उपयोगिता किसी से छुपी नहीं है। परंतु यह अब अपना असर खो रही है मानव की अपनी गलतियों के कारण , लोग खुद से भी अपना इलाज इस दवा से करने लगे है । एरिथ्रोमाइसिन एक संक्रमण की दवा है है कोरोना काल मे लोग इसका उपयोग सर्दी खाँसी मे करने लगे थे, जबकि इसका कोई फायदा इसमें नहीं है उलटे जब लोगों को इसकी सच मे जरूरत होगी तब यह दवा काम नहीं आएगी क्योंकि शरीर मे बिना वजह के इसका उपयोग सूक्ष्मजीव को प्रतिरोधी बना सकती है।
एंटिबयोटिक्स के रेसिस्ट होने के कारण निम्नलिखित है।
- किसी भी प्रकार के Antibiotic का आवश्यकता से अधिक उपयोग
- बिना वजह उपयोग
- खुद से ही इलाज करने लग जाना
- अति-खुराक
- पुराने पुर्जे पर फिर से वही दवा का सेवन करने लग जाना बिना किसी डॉक्टर के सलाह के
- पोल्ट्री फार्मों मे एंटिबयोटिक्स का उपयोग
- थोड़ी सी सर्दी खांसी होने पर antibiotic के पीछे भागने लगना , सबसे अच्छा उपाय आप अपने डॉक्टर को तय करने दे क्या करना है। और किसी अच्छे से डॉक्टर से अपना इलाज करवाना , हर मर्ज की दवा एंटिबयोटिक्स नहीं होती