विटामिन A की कमी के फलस्वरूप आँखों से संबंधित दो बीमारियाँ होती हैं और संक्रमण के लिये प्रतिरोधक क्षमता घटती है. आँख की बीमारियाँ निम्न हैं :
- कॅन्जन्क्टिवाइटिस और कॉर्निअल अल्सरेशन, इसे जिरोप्थेल्मिया भी कहा जाता है. यह आँख की एपिथीलिअम के अपर्याप्त विकास के कारण होती है.
- रात्रि-अंधता (Night Blindness), अर्थात अंधेरे में देखने में अत्यधिक कठिनाई. इसमें उचित दृष्टि के लिये आवश्यक आँख के पिगमेंट (विज्यूअल परपल) पर्याप्त रूप से नहीं बनते हैं.
विटामिन B कॉम्प्लेक्स (Vitamin B-Complex)
क्रिया : विटामिन B एक विटामिन ही नहीं है बल्कि कई पहलुओं (पदार्थों) का बना होता है, जिनमें से कई (यद्यपि सभी नहीं) की विशिष्ट क्रिया होती है.
विटामिन B कॉम्प्लेक्स के अधिक महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं :
- B₁, फैक्टर (थाइमिन भी कहते हैं). इसके अच्छे स्रोत यीस्ट, अनाज, सेम, मटर और अंडे हैं.
- नाइसिन, मुख्यतया यीस्ट, मांस, यकृत और मछली में पाया जाता है.
- रिबोफ्लेविन, मुख्ततया दूध अंडों, यकृत और गुर्दों में पाया जाता है.
- विटामिन B12
- फॉलिक एसिड.
विटामिन B कॉम्प्लेक्स की कमी सामान्यतः मिलती है जब इस समूह के कई विटामिन्स नहीं होते है, लेकिन अकेले विटामिन की कमियाँ भी पायी जाती हैं.
विटामिन B कॉम्प्लेक्स की कमी से होने वाले रोग
B कॉम्प्लेक्स की कमी के कारण होने वाली बीमारियाँ
बेरीबेरी (Beriberi) : यह बीमारी B, फैक्टर (थाइमिन) की कमी के कारण होती है. व्यापि, यह संभव है कि साथ ही अन्य पहलू भी प्रभावित होते हैं, क्योंकि सिर्फ विटामिन 18 से यह बीमारी ठीक नहीं होती है जबकि पर्याप्त आहार, विशेषतः प्रोटीनयुक्त, से बीमारी प्रायः ठीक हो जाती है.
देरीबेरी पूर्वी एवं दक्षिणी एशिया में सामान्यतः पायी जाती है, लेकिन अब यह जापान और काईवान जैसे समृद्ध देशों में पूर्णतः समाप्त हो गयी है.
जहाँ मुख्य भोजन पदार्थ पॉलिश्ड चावल होता है, क्योंकि चावल की पॉलिशिंग से विटामिन B विशेषतः B1, फैक्टर निकल जाता है. यह स्थिति अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में सामान्य पोषक कमी के साथ देखी जाती है.
यह बीमारी दो प्रकारों में होती है: नम बेरी-बेरी, जिसमें अत्यधिक ईडीमा के साथ संकुलित हृदयाघात हो जाता है, और शुष्क बेरी-बेरी जिसमें पेरिफॅरल न्यूरोपेथी हो जाती है.
पश्चिमी देशों में नम बेरी-बेरी के मामले शराब पीने वालों में देखने को मिलते हैं, और इन मरीजों में मानसिक भ्रामकता की अवस्था के साथ दोषपूर्ण याददाश्त भी मिलती है साथ ही न्यूरोपॅथी भी पायी जाती है.
पेलाग्रा (Pellagra). पेलाग्रा उन गरीब किसानों में होने वाली पोषक कमी है, जो मुख्य रूप से मक्का खाकर जीते हैं. इनके आहार में नाइसिन और ट्रिप्टोफेन नामक अमीनो अम्ल की कमी होती है. पहले यह स्थिति अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में पायी जाती थी, लेकिन अब पह अफ्रीका के उपसहारान क्षेत्र में अकाल के कारण देखी जाती है. विकसित देशों में दीर्घ मद्यपान की लत वाले लोगों में कभी-कभी कुछ मामले इस बीमारी के देखे जाते हैं. इन लोगों में शराब के कारण सामान्य भोजन (खुराक) और इससे मिलने वाली शारीरिक ऊर्जा दोनों कम हो जाते हैं.
पेलाग्रा के मुख्य लक्षणों (3Ds के रूप में याद रखा जाता है) को निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया जा सकता है :
- आमाशपिक-आंत्रिक : गंभीर ग्लॉसाइटिस, स्टोमेटाइटिस एवं दस्त.
- त्वचा में परिवर्तन : चेहरे और हाथ पर डर्मेटाइटिस एवं साथ ही अंतिम अवस्थाओं में विशिष्ट गहरी रंजकता (Dark Pigmentation) हो जाती है.
- मानसिक कमजोरी, बेचैनी और ध्यान की कमी तथा गंभीर दीर्घ मामलों में पागलपन (Dementia)
विटामिन C
क्रिया : केशिकाओं की एन्डोथीलिअम की उचित वृद्धि और ऊतकों के ठीक होने के लिये विटामिन C आवश्यक होता है. इस विटामिन की कमी का मुख्य परिणाम केशिकाओं से रक्तस्राव होना है.
स्रोत : संतरे, टमाटर, काले अंगूरों का रस, नींबू, आलू एवं हरी सब्जियाँ.
विटामिन C की कमी के कारण होने वाली बीमारियाँ :
स्कर्वी, विटामिन C की कमी के कारण होने वाली एक ज्ञात बीमारी है, एक समय ऐसा था जब स्कर्वी मुख्यतः नाविकों और शिशुओं में बहुत सामान्य बीमारी थी. समुद्री जहाजों की लम्बी यात्रा पर रहने वाले नाविकों को ताजे भोज्य-पदार्थ, विशेषतः फल एवं हरी सब्जियों से वंचित रहना पड़ता था. गरम किए गए दूध के रूप में बॉटल से पोषण लेने वाले शिशुओं में भी सामान्यतया स्कर्वी हो जाती है, क्योंकि दूध को गरम करने से सभी विटामिन C नष्ट हो जाते हैं.
स्कर्वी के कारण को ज्ञात करने के परिणामस्वरूप यह बीमारी आजकल बहुत विरले होती है, विशेषतः शैशवावस्था में, लेकिन यह सूखा प्रभावित आबादियों जैसे अफ्रीका में अभी भी पायी जाती है. दुर्भाग्यवश, यह अकेले रहने वाले वृद्ध व्यक्तियों में अभी भी होती है, क्योंकि वे ताजे फल और सब्जियाँ लेने में असमर्थ रहते हैं.
स्कर्वी दो मुख्य प्रकारों की होती हैं – शिशुओं में होने वाली स्कर्वी और वयस्कों में होने ताली स्कर्ती
विटामिन D
क्रिया : आहार में उपस्थित कैलशियम के उचित शोषण के लिये विटामिन D आवश्यक होता है. इसकी अनुपस्थिति में आँतों से कैलशियम शोषित नहीं होती है और कैलशियम की इस कमी से अस्थियों की सामान्य वृद्धि तथा स्नायुओं एवं पेशियों की सामान्य सक्रियता में गड़बड़ी हो जाती है.
स्रोतः विटामिन A की पूर्ति करने वाले भोज्य-पदार्थ, अर्थात प्राणीय वसा, मक्खन, पनीर, अंडे, दूध एवं फिश. तथापि, विटामिन के इन भोज्य पदार्थों के स्रोत के अलावा सूर्य के प्रकाश में (या अल्ट्रावॉइलेट प्रकाश में), त्वचा पर इसकी क्रिया द्वारा विटामिन D के निर्माण का विशिष्ट गुण होता है.
विटामिन D की कमी से बढ़ते बच्चों में ‘रिकेटस्’ और वयस्कों में आस्टिओमेलेशिया बीमारियाँ होती हैं.
विटामिन K
क्रिया : विटामिन K प्रोथ्रॉम्बिन के निर्माण के लिये आवश्यक होता है, जो सामान्यतया रक्त में उपस्थित रहता है और रक्त जमाव का यह मुख्य पहलू है.
स्रोत : पालक, पत्तागोभी, फूलगोभी एवं जौ. इनके अतिरिक्त, आँतों में सामान्य रूप से रहने वाले बैक्टीरिआ विटामिन K का निर्माण करते हैं.
विटामिन K की कमी से होने वाली स्थिति को कोएग्यूलोपॅथी कहते हैं. प्रोथ्रोम्बिन के संश्लेषण के लिये अपर्याप्त विटामिन K होने के कारण रक्त में प्रोथोम्बिन की कमी रहती है. गंभीर कमी होने से रक्तस्राव हो सकता है. नवजात में विटामिन K के सीमित भंडार होने के कारण इनमें गंभीर रक्तस्राव का खतरा होता है और इस अवस्था को नवजात की रक्तस्रावी बीमारी कहते हैं. सामान्यतः जन्म के समय इस बीमारी को होने से रोकने के लिये नियमित रूप से विटामिन K दिया जाता है.
विटामिन K के उचित शोषण के लिये पित्त लवण आवश्यक होते हैं, इसलिये अवरोधित पीलिया में इस विटामिन का अपर्याप्त शोषण होता है. फलस्वरूप अवरोधित पीलिया के दीर्घ मामलों में प्रोथ्रॉम्बिन के कम स्तर के कारण रक्तस्राव हो सकते हैं और विटामिन K इन्जेक्शन्स से उपचार किया जाता है.
आमाशयिक-आंत्रिक मार्ग की दीर्घ बीमारियों जैसे कि ट्रापिकलस्यू, सीलियक बीमारी और दीर्घ अल्सरेटिव कोलाइटिस में, या आँतों का अधिक भाग निकाल देने से आँतों में विटामिन K का शोषण कम हो जाता है जिससे प्रोथ्रॉम्बिन-कमी और रक्तस्राव हो जाते हैं.
गंभीर यकृतीय क्षति, जैसे कि यकृत के सिरोसिस या हेपॅटाइटिस के गंभीर मामलों में हो सकती है, यकृत में प्रोथ्रॉम्बिन के निर्माण में बाधा पैदा कर सकती है.
एन्टिकोऍग्यूलॅन्ट दवाइयाँ रक्त में प्रोथ्रॉम्बिन के सामान्य निर्माण को नष्ट कर देती हैं जिससे – रक्तजमाव अवधि बढ़ जाती है. इसके लिये वार्कारिन दवाई बहुत प्रभावी होती है और विकित्सा विज्ञान में इनका उपयोग शिरीय थ्रॉम्बोसिस के उपचार में रक्त जमाव अवधि बढ़ाने के लिये किया जाता है.