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what is calcium.

कैल्शियम क्या है? ( what is calcium )

कैल्शियम क्या है? ( what is calcium )Calcium एक आवश्यक पोषक तत्व है, जिस प्रकार मांसपेशियों के लिए प्रोटीन और शक्ति के लिए कार्बोज और वसा की की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार हड्डियों को strong और ब्लड को बैलेंस रखने के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है, लगभग पूरे बॉडी वेट का 99% कैल्शियम हड्डियों में और कुछ मात्रा दांतों में उपस्थित होता है. 1% बॉडी के सॉफ्ट टिश्यू फ्लूइड में पाया जाता है, एक एडल्ट स्केलेटन में औसतन् लगभग १२०० सौ ग्राम कैल्शियम  hydroxya- Patite के रूप में पाया जाता है. जो हड्डियों को कठोर बनाता है, आँतों से पर्याप्त कैल्शियम के शोषण हेतु विटामिन की आवश्यकता होती है इसके अभाव में कैल्शियम की कमी हो जाती है, कैल्शियम की कमी कई कारणों से हो सकती है जैसे – unbalanced डाइट, आंतो से कैल्शियम का अपर्याप्त शोषण calcium की कमी से पेशियाँ कमजोर हो जाती है. हार्टबीट ठीक नहीं रहती, रक्त पतला हो जाता है पेशियाँ अकड़ जाती है मासिक धर्म के समय पेट में ऐठन रहती है स्किन ड्राई हो जाती है कई बार बाल झड़ने लगते है कैल्शियम की मात्रा एक साधारण व्यक्ति को एक ग्राम कैल्शियम काफी होता है. गर्भवती स्त्री को १.५ ग्राम स्तनपान करनेवाली माताओं को २ ग्राम प्रतिदिन किशोर बच्चों को १.४ ग्राम प्रतिदिन प्राप्ति साधन कैल्शियम दूध के अतिरिक्त अन्य सस्ते तथा सर्वत्र सुलभ खाद्यों में मिलता है । गाजर का कैल्शियम दूध से किसी भी प्रकार कम नही है । बल्कि बादाम उससे भी कम उपयोगी है । अजवाइन , पत्ता गोभी, शलजम, चुकंदर, और सहजन, की फली और पत्ती में पर्याप्त मात्रा में होता हैं । प्रत्येक हरिसब्जी ,फल , अन्नकण के चोकर , निम्बू संतरा,मसूर , तिल, राव और शिरा में भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं । इसके आलावा यह अंजीर , भिन्डी, गोभी, मैथी का साग , पलक, मटर, सोयाबीन, लहसुन, सेम, गन्ना, मठ्ठा , मक्खन , पनीर और गुड में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कैल्शियम के कार्य यह क्षार का उत्पादक होता है । यह हड्डियों , दांतों , भ्रूण के विकास में आवश्यक होता है । रोग प्रतिरोधक व् जीवन शक्ति वर्धक है । रक्त को थक्का जमाने में सहायक होता है । मांशपेशियो को शक्ति प्रदान करता है ।

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BACTERIA

जीवाणु: मित्र और शत्रु (Bacteria: Friend and foe)

परिचय क्या सभी जीवाणु हानिकारक होते है ? हमारे जीवन में इनकी क्या अच्छे और हानिकारक पहलु है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे । जीवाणुओं की खोज1. लाभदायक जीवाणु ( Friend bacteria )2. हानिकारक जीवाणु ( Foe bacteria ) परिचय टाइफाइड, मलेरिया, कालाजार, क्षय रोग आदि जैसे घातक रोगों से प्रतिदिन हजारो लोग मौत के मुहं में चले जाते है । विश्व में अधिकांश मौतों के कारण भी यही जीवाणु है । जीवाणु हर जगह पाए जाते है, हवा, पानी, धरती के उपर , धरती के नीचे, हमारे शरीर पर शरीर क्र भीतर , यहाँ तक की हमारे भोजन में भी पाए जाते है । क्या सभी जीवाणु हानिकारक होते है ? हमारे जीवन में इनकी क्या अच्छे और हानिकारक पहलु है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे । जीवाणुओं की खोज जीवाणुओं की खोज आज से करीब-करीब 300 साल वर्ष पहले माइक्रोस्कोप के आविष्कार के साथ प्रारंभ हो गयी थी । लेकिन उस समय तक उनका वर्गीकरण नही हो सका था । रोगाणुओं का स्वरूप 1850 ई. में लुई पास्चर ने निर्धारित किया । इनकी खोज से संसार भर के वैज्ञानिकों , डॉक्टरों और बुद्धिजीवियों में खलबली मच गयी और सभी रोगों की कारणों की जाँच पड़ताल होने लगी, अलग-अलग प्रकार के कीटाणुओं की तलाश होने लगी रोगों को उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को खोज निकाला गया । और उन्हें शरीर से मर भगाने के लिए प्रयास आरम्भ क्कर दिया गया । जीवाणु आकर में इतने छोटे होते है की 1 इंच के स्थान पर 25000 जीवाणु रह सकती है । एक सुई के नोक पर सैकड़ो जीवाणु ठहर सकते है । और 1 ग्राम मिटटी में 40 million जीवाणु रह अकते है । जीवाणुओं में नर और मादा का भेद नही होता और ना नही अपनी संख्या में वृद्धि के लिए इन्हें सहवास की आवश्यकता होती है । इस प्रकार के जीव में वृद्धि एक से दो , दो से चार और चार से आठ के क्रम में होती रहती है । आधा से एक घंटे में जीवाणु फट कर दो हो जाते है । यदि एक घंटे में इस क्रम को दो माना जाए तो 24 घंटे में 1 कीटाणु 1 करोड़ 64 लाख से अधिक हो जाते है । यदि आधा घंटे में विभाजन होता हो तो 3 quadrillion हो जाते है । जीवाणु को सूर्य का प्रकाश और ऑक्सीजन नही भाता है । मुर्दों, सड़े स्थानों, अँधेरे, असुद्ध वायु और साधारण वायुमंडल लगभग 60 से 100 फ़ारेनहाइट में तीव्रता से वृद्धि करते है । जीवाणुओं को दो भागों में बाटा जाता है । लाभदायक जीवाणु ( Friend bacteria ) शत्रु या हानिकारक जीवाणु ( foe bacteria ) 1. लाभदायक जीवाणु ( Friend bacteria ) मित्र जीवाणुओं ( Friend bacteria ) से दूध से दही बनता है, पनीर बनता है, आटे में खमीर उठता है, सिरका और अल्कोहल जैसी वस्तुए बनती है । कई प्रकार के ऐसे जीवाणु है जो कृषि में सहयोग करते है । और सबसे से बड़ी बात आज कल जिस दवा के कारण दुनिया भर के लोगो…

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इन गलतियों के कारण आप मौसम के संधि काल में सर्दी, खांसी, बुखार आदि से बीमार पड़ जाते है?

बदलते मौसम मे हम बीमार क्यों हो जाते है? देखिए मोटा माटी बीमार होने के कुल दो कारण है । आंतरिक कारक- जैसे हार्मोन की गड़बड़ी से मूड का बदलना , गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन, चिंता-तनाव , जैसे लक्षण आते है । इसी समूह मे एक बात यह आती है की पोषक तत्वों की कमी से शरीर मे कई अहम बदलाव आ जाते है, जैसे विटामिन की कमी से उत्पन्न रोग , बाहरी कारक -जैसे अधिक ठंडी -गर्मी , आघात, बिजली के झटके, शराब का सेवन, संक्रम रोगों के शिकार होना , धूम्रपान इत्यादि आते है , जब हम मौसम के संधि काल मे होते है। तो हमारे शरीर का तापमान लगातार बदलता रहता है। कभी सर्दी काभी गर्मी बदलते तापमान के कारण हमारे मूँह और पेट उपस्थित सूक्ष्मजीवाणुओं के तापमान मे परिवर्तन आता है, यही वो समय होता है जब जीवाणु अपनी संख्या मे तेजी से वृद्धि करता है। इसलिए जब हम तेज धूप से आते है तो ठंड पानी नहीं पीने की सलाह दी जाती है, जीवाणुओ मे वृद्धि हमें बीमार कर सकता है जैसे - सर्दी, खांसी,बुखार अक्सर देखा गया है की बारिश के मौसम में बुखार अधिक होता है। ऐसा इसलिए की इस मौसम मे रोगाणुओं की संख्या मे अप्रत्यशीत वृद्धि हो रही होती है।, जीवाणुओं के लिए ऐसा मौसम अनुकूल होता है अपनी संख्या में वृद्धि के लिए बदलते मौसम में बीमार होने के प्रमुख कारण असमय स्नान जैसा की उपर बताया गया है की बदले मौसम में रोगाणु अधिक पनपते है, इस मौसम में असमय स्नान आपको बीमार कर सकता है। सबसे उचित समय सुबह का स्नान होता है। सुबह के स्नान का वर्णन हामरे आयुर्वेद भी किया गया है। इस समय का स्नान चित्त को शांति, ओज और ऊर्जा को बढ़ाने वाला होता है। इसलिए सुबह का स्नान ही किया करे । असमय और अनुचित भोजन मौसम के बदलने का प्रभाव हमारे पाचन तंत्र पर भी पड़ता है, असमय किया गया भोजन अपच, बदहजमी को को बढ़ावा देता है। गैस का कारण बनता है। जिससे पेट दर्द, पतला दस्त, उल्टी, आदि हो सकता है, देखिए भोजन को digest होने के लिए एक निश्चित तापमान की आवश्यकता होती है जब इस तापमान मे परिवर्तन होता है तो अनेक समस्याए उत्पन्न हो जाती हैं। और हमे डॉक्टर के पास जाना पड़ सकता है। अनुचित भोजन से मतलब अपनी तासीर के उलट कोई ऐसा पदार्थ कहा लेना जिनका पाचन हमारे लिए सही नहीं होता या फिर सफाई के अभाव वाले स्थानों से भोज्य पदार्थों का सेवन सदैव हानिकारक होता है। दूषित पानी किसी भी मौसम मे खासकर बारिश के बाद के मौसम के बाद में पानी का दूषित हो जाना आम बात है । दूषित पानी कई प्रकार के रोगों का कारक है। जिसे सहायक कारक कहा जा सकता है। सहायक कारक उसे कहते है जिसमें रोगी आनुवंशिक, इम्यून सिस्टम, शारीरिक क्षमता आदि दोषों से ग्रसित हो और सहायक कारक रोगों को उभरने के मौका दे देता है।

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चिलचिलाती धूप से आने के बाद तुरंत पानी पीना चाहिए या नहीं?

चिलचिलाती धूप से आने के बाद तुरंत पानी पीना चाहिए या नहीं?

हम सभी ने सुना है की कड़ी धूप से होकर अंदर आए तो ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए। पर ऐसा क्यों? चलिए आपको हम बताते है । हमारे मूँह के अंदर ग्रास और श्वासनली के आस-पास जो जीवाणु रहते है, वे धूप में रहने के कारण काफी अधिक तापमान पर होते है लेकिन जैसे हम ठंडा पानी पीते है, जीवाणुओं का तापमान अचानक से गिर जाता है। तापमान मे अचानक से परिवर्तन जीवाणुओं में प्रजनन दर को तेज कर देता है। जिससे हम बीमार पड़ जाते है। यही कारण है की जब मौसम बदलता है तो तापमान मे अचानक परिवर्तन के कारण हमारे आस-पास पाये जाने वालें जीवाणुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है जिससे हम प्रभावित होते है, अर्थात जब मौसम एक स रहता है तो हमारे उपर जीवाणुओं का आक्रमण कम होता है। तेज धूप से आने के बाद लोगों को नॉर्मल पानी पीना चाहिए. बाहर से आने के तुरंत बाद बहुत ठंडा पानी पीने से सभी लोगों को नुकसान नहीं होता है, लेकिन जो लोग डायबिटीज, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गले की परेशानी या कमजोर इम्यूनिटी से जूझ रहे हैं, उन्हें कुछ दिक्कतें हो सकती है. सभी लोगों को धूप से आने के बाद कुछ मिनट रुककर ही पानी पीना चाहिए, ताकि बॉडी में अचानक टेंपरेचर चेंज न हो. हर व्यक्ति का शरीर अलग-अलग होता है और ठंडे पानी का असर भी अलग होता है. भीषण गर्मी के मौसम में लोगों को ज्यादा देर धूप में नहीं रहना चाहिए, वरना इससे लोगों को हाइपरथर्मिया हो सकता है. ऐसी कंडीशन में शरीर का तापमान 103-104 डिग्री फॉरेनहाइट तक पहुंच सकता है और कई बार मौत भी हो सकती है. इससे बचने के लिए लोगों को धूप में ज्यादा देर रहने से बचना चाहिए. इस मौसम में लोगों को ज्यादा पसीना आता है, जिससे शरीर का हाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बिगड़ सकता है. डिहाइड्रेशन से बचने और ब्लड सोडियम लेवल को सही रखने के लिए लोगों को बाहर से आने के बाद पानी में नींबू, नमक और चीनी मिक्स करके पीना चाहिए. इससे शरीर में सोडियम की कमी नहीं होगी.

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hair loss

कही आपके बालों के झड़ने के पीछे विटामिन D की कमी तो नहीं ?

आनुवंशिक कारक – बालों के झड़ने का सबसे आम कारण वंशानुगत या आनुवंशिक कारक हैं। इस स्थिति को पुरुष या महिला पैटर्न गंजापन के रूप में जाना जाता है और यह डायहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन (डीएचटी) के प्रति संवेदनशीलता का परिणाम है, एक हार्मोन जो बालों के रोम को सिकुड़ने का कारण बनता है।

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Antibiotic क्या है? इसकी खोज किसने की , pre-antibiotic era मे संक्रमण का इलाज कैसे किया जाता था?

एंटिबयोटिक्स के रेसिस्ट होने के कारण नमस्कार दोस्तों साल 1928 में  एक physician , microbiologist अपनी छुट्टिया बिताकर वापस अपने प्रयोगशाला लौटे उन्होंने देखा की पेट्री डिश  में जिसे वो कवर करना भूल गए थे , एक फफूंद penicillium notatum ने आसपास के bacteria को मार दिया था ।   आपको बताते चले की बैक्टीरीअ वही pathogen है जिसके कारण जानलेवा घातक रोग होते है जैसे की- tuberculosis , typhoid , निमोनिया , सिफलिश पेट्री दिसँ की इस घटना से इन्सपाइर हो कर उन्होंने antibiotic नाम कोई औषधि बनाई शुरुआती परीक्षण उन्होंने ब्रिटिश फार्मसूटिकल कंपनी के सहायता से इंसानी घाव पर किया जो की बैक्टीरीअ से इन्फेक्टिड थे । परीक्षण पेनिकीलिउम नोटातूम से निर्मित ऐन्टाइबाइआटिक से उनका इलाज किया गया । और जो सफल रहा । और us  गवर्नमेंट ने इस सफल परीक्षण के बाद इस ऐन्टाइबाइआटिक के मास production मे सहायता की । 1944 आते-आते पेनिसिलिन इन्फेक्शन ट्रीट्मन्ट मे होसटीपीटल्स और फील्ड मे widely use होने वाली याऑउषादी बन गई , लाखों लोगों की जान बचाने वाली इस दवा का nikname वन्डर दृग था । और इस मिक्रोलोगीस्ट का नाम आलेक्ज़ेंडएर फ्लेमिंग था इस काम के लिए सं 1945 मे नोबल प्राइज़ दिया गया । अब एक सवाल उठता है antibitics के खोज से पहले इन्फेक्शन का उपचार कैसे किया जाता था ।                                         Pre – Antibiotic era अंतिम बीसवीं सदी के पहले, जब एंटीमाइक्रोबियल्स विकसित नहीं हुए थे, संक्रमण का इलाज कैसे किया जाता था? यह एक रोग विशेषज्ञों के लिए बड़ी चुनौती थी। यहां कुछ प्राचीन औषधियाँ और तकनीकें थीं जो संक्रमण का इलाज करने में उपयोग होती थीं: रक्त निकासी (Bloodletting): यह एक प्राचीन उपचार विद्धि  थी जो लगभग 3000 वर्षों तक चली। इसमें शरीर से इंफेकटेड ब्लड  की निकासी की जाती थी, जिसमें यह  माना जाता था कि यह विद्धि  हानिकारक रोगाणुओं को बाहर निकाल देता है। यह तभी किया जाता था जब रोगी के शरीर में अधिक रक्त होता था। और इसमे मृत्यु की सभावना बनी रहती थी। Bloodletting के लिय खास जगह पर एक चिरा लगाकर शरीर दूषित रक्त को बाहर निकाल दिया जाता था। जोंक चिकित्सा (Leech Therapy) एक प्राचीन उपचार विधि है जिसमें जोंक (लीच) का उपयोग किया जाता है। इस थेरेपी में जोंक को शरीर के परेशानी वाले भाग पर रखा जाता है, और जब ये जोंक इंसान का  खून पीती है, तो एक प्रकार की लार छोड़ती है। यह लार रोगी की  परेशानी को ठीक करने में मदद करती है। जोंक चिकित्सा का उपयोग प्राचीन मिस्र के समय से ही किया जा रहा है। तब से अब तक, जोंक का उपयोग तंत्रिका तंत्र की परेशानी, दांतों की समस्याएँ, त्वचा रोग और संक्रमण के उपचार में किया जाता रहा है। जड़ी-बूटियाँ और कवक (Herbs and Molds): कुछ प्राचीन सभ्यताएं संक्रमण के इलाज के लिए जड़ी-बूटियों और मोल्डस  का उपयोग करती थीं। उदाहरण के लिए, प्राचीन मिस्रियों ने संक्रमित घावों पर मोल्डस  लगाया करते थे शहद (Honey ) प्राचीन समय में लोग घाव पर शहद भी लगाया करते थे । क्योंकि इसमें ऐन्टीबैक्टीरीयल गुण पाए जाते है…

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टाइफॉइड बुखार (Typhoid fever) कारण लक्षण और उपचार की जानकारी हिन्दी में ।

टाइफॉइड बुखार नमस्कार दोस्तों टाइफॉइड बुखार एक जानलेवा रोग है। जो सलमोनेला टाईफि नामक बैक्टीरीआ से होता हैं , W.H.O की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 9 करोड़ लोग इस रोग से पीड़ित होते है। और इनमें से 1 लाख 10 हजार लोग मारें जाते है। आज हम इस टॉपिक के माध्यम से जानेंगे की टाइफॉइड बुखार कैसे और क्यों होता है तथा इसका क्या इलाज है। टाइफॉइड बुखार सलमोनेला टाईफि नामक बैक्टीरीआ से होता हैं जो की मानव शरीर मे जीवित रहता है और वृद्धि करता जाता है । शहरी करण , जलवायु परिवर्तन इस रोग के होने के संभावना को और अधिक बढ़ा देता है। इस बुखार के बैक्टीरीआ दूषित भोजन, पानी, दूध, इत्यादि से फैलता है सामान्यतः जिस जगह साफ-सफाई की कमी होती है। एक बार इस रोग के बैक्टीरीआ शरीर मे प्रवेश कर जाते है तब बुखार के सेपटीसीमिया हो जाता है। सलमोनेला टाईफि समान्यतः छोटी आँत को अपना घर बना लेते है और ज्यादा वृद्धि कर लेने पर आँत मे अल्सर पैदा कर देते है। रोग लक्षण - प्रायः पीड़ित होने के 10 से 14 दिन बाद दिखते है। रोग लक्षण इस रोग का आरंभिक लक्षण सिर दर्द , बदता हुया बुखार, बेचैनी , मतली, पेट दर्द, कब्ज, या पतला दस्त इसके प्रमुख लक्षण है। गंभीर संक्रमण की स्थिति मे रोगी की हालत और अधिक बिगड़ सकती है यंहा तक की मृत्यु भी हो सकती है। Acute Typhoid Fever गंभीर हो सकता है। यह निर्भर करता है clinical Setting और Quality care पर 10% टाइफॉइड पीड़ित गंभीर जटिलताओं से पीड़ित होते है । और 3% लोगों को अस्पताल मे भर्ती होना पड़ जाता है। रोगी की नब्ज गति बढ़ जाती है। रक्तचाप कम हो सकता है। तीव्र संक्रमण मे आंतों मे अल्सर , हेपेटाइटिस, निमोनिया, हैमरेज भी हो सकता है प्रायः ऐसे लक्षण बहुत ही कम देखने को मिलते है। संक्रमण के स्तर 1-5% लोग इस रोग के वाहक होते है । कभी-काभी ऐसे लोग जिनमे सलमोनेला टाईफि के bacteria सुसुप्त अवस्था मे होते है , जो उनको हानी नहीं पहुचाते परंतु ऐसे लोगों के मल या उनके द्वारा पर्याप्त साफ-सफाई के अभाव मे भोजन परोशने या बनाने के दौरान यह अन्य लोगों को प्रभावित कर सकता है। संचरण मानव एक मात्र प्राकृतिक होस्ट है सलमोनेला टाईफि का , सलमोनेला टाईफि संक्रमण शौच, दूषित, पानी , भोजन, दूध, से संचरित हो सकता है । खासकर सीवेज के पानी से उगाई गई फल,सब्जियों से ऐसा तथ्य चूहों पर किए गए परीक्षण के आधार पर कहा जाता है। सलमोनेला टाईफि मुख, और श्वसन तंत्र द्वारा हमारे शरीर के अंदर संचरित हो सकते है। टाइफॉइड रोग ऐसे क्षेत्रों मे अधिक पाया जाता है , जिस जगह पे कम-साफ सफाई पाई जाती है, जैसे -फूड स्टॉल पर हैन्डलर द्वारा सफाई का ध्यान न रखना Diagnosis blood Culture और Widal Test द्वारा इस रोग की पहचान की जा सकती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर द्वारा Blood Count भी कराया जा सकता है। कभी-कभी मल का परीक्षण , Bone Marrow टेस्ट का भी सलाह दिया…

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Safcold Tablet उपयोग लाभ , साइड इफेक्ट की जानकारी हिन्दी में

Safcold टैबलेट की सामान्य जानकारी हिन्दी में Safcold टैबलेट के उपयोग की जानकारी हिन्दी में उपयोग करने का तरीका Safcold टैबलेट की सामान्य जानकारी हिन्दी में Safcold-Tablets. एक डीक्टर के पुर्जे पर मिलने वाली औषधि Safcold Tablets में निम्नलिखित मिश्रित औषधीयों का मिश्रण है। 1- levocetirizine-Di Hydrodoride-2.smg 2. Phenylephrine Hydrocloride-10mg Paracetamol-soong livocetrizine लेको सेटिरिजिन एक एंटीहिस्टामाइन है जिसका उपयोग एलर्जिक राजनान दिस और पिति इसके और के इलाज के लिए किया भी उपयोग हो सकते है जैसे ①watery-eyes Runny nose, itching eye/nose Sneezin (छींक) Phenylephothe Hydrocloride यह औषधि मुख्य रूप से सर्दी जुकाम, नाक और कान का बंद होना के इलाज के रूप में किया जाता है। -paracetamol •Paracetamol एक ज्वरनाशक औषधि है जो अधिकतर मामलों में दि जानेवाली दवा है। Safcold टैबलेट के उपयोग की जानकारी हिन्दी में यह औषधि सर्दी , जुकाम, नाक का बहना , ऐलर्जी के साथ-साथ सिर दर्द , बुखार , बदन दर्द मे डॉक्टर द्वारा दी जानेवाली दवा है । इसके अलावा निम्नलिखित स्थितियों मे दी जा सकती है। सर्दी बुखार बदन दर्द नाक का बहना ऐलर्जी सिर दर्द हल्का खांसी के साथ बुखार गले का दर्द कान का दर्द नाक का दर्द उपयोग करने का तरीका डॉक्टर के बताए निर्देश अनुसार या फिर इसे भोजन के बाद एक टैबलेट सुबह और शाम लिया जा सकता है। हर व्यक्ति शारीरिक स्थिति अलग अलग होती है इसलिए उपयोग करने के तरीके में भिन्नता हो सकती है इस दवा का सेवन अपने डॉक्टर से पुछ कर ही करनी चाहिय । दवा की मात्रा रोगी का पिछला औषधि इतिहास और वर्तमान स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकती है । दवा का सेवन डॉक्टर के बताए अवधि तक ही करनी चाहिय

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Zerodal Sp टैबलेट के उपयोग, फायदे और नुकसान- Zerodol-SP tablet ke Upyog, fayaide aur Nuksan

Zerodal sp क्या हैं?जीरोडॉल का उपयोग और फायदे- Uses and Benefits of Zerodol SP Tablet in Hindiजेरोडल एसपी लिवर पर क्या असर करती है?जेरोडल एसपी kidney पर क्या असर करती है?इस दवा के सेवन के बाद वाहन चला सकते है क्या?जेरोडल एसपी स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित है Zerodal sp क्या हैं? जेरोडल एसपी तीन औषधियों के संयोग वाली दवा है। जिसमें Paracetamol + Aceclofenac+ serratiopeptidase नामक दवाओं का मिश्रण है। यह दवा एक डॉक्टर के पुर्जे पर मिलनें वाली दवा है , जो दर्द से राहत दिलाने का काम करती है जैसे शल्यक्रिया के बाद होने वाले दर्द से राहत पाने के लिए , घाव के दर्द से राहत पाने के लिए , मांशपेसियों के दर्द में , यह दवा दर्द और सूजन को कम करने वाली प्रभावी औषधि है । जीरोडॉल का उपयोग और फायदे- Uses and Benefits of Zerodol SP Tablet in Hindi जीरोडोल एसपी टैबलेट का इस्तेमाल काफी स्थितियों, लक्षणों और बीमारियों का नियंत्रण, रोकथाम और इलाज करने के लिए किया जाता है। इसमें निम्न लक्षण हो सकते हैं:- कान का दर्द बदन दर्द घाव का दर्द दांत दर्द बुखार पीठ दर्द शल्यक्रिया के बाद का दर्द गठिया वाला दर्द गले का दर्द माँसपेशियों का दर्द सूजन होना फ्लू होना जोड़ों का दर्द आघात या चोट से उत्पन्न दर्द यदि आप इनमें से किसी लक्षण से पीड़ित है तब आपको अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह के बाद इस दवा का सेवन कर सकते है । याद रखे दवा कि मात्रा व्यक्ति की शारीरिक स्थिति रोग की गंभीरता पिछले इलाज का इतिहास को ध्यान मे रखते हुए अलग-अलग हो सकता है जेरोडल एसपी लिवर पर क्या असर करती है?यह दवा यकृत रोगों से पीड़ित लोगों को डॉक्टर से पूछकर ही सेवन करनी चाहिय , 7 दिन से अधिक दिन तक इस दवा का सेवन लिवर पर हानिकारक प्रभाव दल सकते है। जेरोडल एसपी kidney पर क्या असर करती है?उच्च खुराक में जरोडल एसपी टैबलेट लेने से किड्नी को गंभीर नुकसान हो सकता हैं। इस दवा के सेवन के बाद वाहन चला सकते है क्या?बिल्कुल चला सकते है क्योंकि यह एक एंटी नारकोटिक analgesic हैं। जेरोडल एसपी स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित है सुरक्षित हो सकता है । एक बार इस बारें मे डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।

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माइग्रैन (आधा सिरदर्द) Migraine कारण, लक्षण और उपचार

नैदानिक लक्षण (Clinical Feature)कारण (Cause)उपचार माइग्रैन एक प्रकार का आवेगी सिर दर्द है जो बहुधा एक ही परिवार के कई सदस्यों को होता है । माइग्रैन की कई विशिष्टताएं होती है, लेकिन यह जरूरी नहीं है की इस रोग से पीड़ित सभी व्यक्तियों मे ये विशिष्ट लक्षण हो। नैदानिक लक्षण (Clinical Feature) सिरदर्द प्रायः दर्द के दौरे के पूर्वाभास (Aura) से होता है. इसके अंतर्गत दृष्टि संबंधी गड़बड़ी के साथ रोशनी की तेज चमक विभिन्न रंगों की आड़ी-टेढ़ी लहरें दिखना, पा दृष्टि में आंशिक कमी; या चेहरे या शरीर के एक तरफ वाले भाग में सुत्रपन या झुनझुनी होने का संवेदन महसूस होना सम्मिलित है. दर्द के दौरे का यह पूर्वाभास करीब आधे घंटे तक रहता है और इसके बाद सिरदर्द होता है. सिरदर्द प्रायः धड़कनयुक्त होता है जो सिर के एक तरफ ज्यादा (आधा सिरदर्द) और बहुधा भूख में कमी, जी मितलाने एवं उलटियां होने से सम्बन्धित होता है. यह सिरदर्द कई घंटों या कभी-कभी कई दिनों तक हो सकता है. माइग्रेन के दौरे अत्यधिक कार्य या तनाव के बाद आराम के क्षणों में, विशेषतः सप्ताहांत में होने की संभावना ज्यादा रहती है. विभिन्न रोगियों में माइग्रेन के दौरे भिन्न-भिन्न प्रेरक पहलुओं द्वारा उत्तेजित होते हैं. कुछ भोज्य-पदार्थ (जैसे चॉकलेट्स, पनीर, शराब); कुछ दवाइयां (जैसे गर्भनिरोधक गोलियाँ); तेज रोशनी; अत्यधिक व्यायाम; भावनात्मक गड़बड़ी या रजोधर्म के पूर्व का तनाव माइग्रेन के दौरे को बढ़ा सकते हैं. कारण (Cause) ऐसा सोचा जाता है कि माइग्रेन प्रमस्तिष्कीय रक्तवाहिकाओं में होने वाले परिवर्तनों के कारण होता है. दर्द के दौरे की अवस्था में ये रक्तवाहिकाएँ संकुचित होकर सँकरी हो जाती हैं जबकि धड़कनयुक्त सिरदर्द रक्तवाहिकाओं के इसके बाद होने वाले विस्तारण और पूर्ण रूप से भर जाने से सम्बन्धित रहता है. माइग्रेन से पीड़ित व्यक्तियों को यह सीख लेना चाहिये कि माइग्रेन के दौरे को बढ़ाने वाले संभावित प्रेरक पहलू कौनसे हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है. उपचार इसका उपचार प्रायः प्रोप्रानोलॉल नामक दवा से की जाती है यह रोगी उम्र और स्थिति के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। और साधारण घरेलू उपचार से जब राहत ना मिले तब अपने डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए किसी भी दवा का सेवन स्वं से नहीं करना चाहिए

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अपच (बदहजमी) (Dyspepsia) कारण लक्षण और उपचार

दर्द भोजन के बाद उदर के ऊपरी भाग मे जलनयुक्त दर्द या तकलीफ होना बदहजमी का उदाहरण है। भोजन के बाद विभिन्न प्रकार के दर्द अलग-अलग बीमारियों मे देखे जाते है। जैसे गैस्ट्रिक अल्सर मे भोजन करने के आधे घंटे के अंदर दर्द शुरू हो जाता है, और यह दर्द फिर से भोजन खासकर मशलेदार या गरम भोजन करने से और अधिक बढ़ जाता है।

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विटामिन

विटामिन (Vitamin) क्या है ? विटामिन के प्रकार, कार्य, कमी से उत्पन्न रोग, स्रोत

विटामिन्स, विभिन्न भोज्य-पदार्थों में उपस्थित कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं जो स्वास्थ्य को उचित रूप से बनाये रखने के लिये आवश्यक होते हैं. कई प्रकार के विटामिन्स होते हैं जिनकी शरीर के चयापचय के कुछ भाग पर कुछ विशिष्ट क्रिया होती है. विटामिन की कमी से शरीर में प्रायः महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाते हैं.

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